Monday, December 7, 2009

अमिताभ जी और सुशील की जुगलबंदी की मुम्बई











ये मुम्बई हैं मेरे यार 

देख रहा हूँ
रेल की पटरियों पर
तारकोल की सड़को पर
लोगों को भागते-दोड़ते हुए।
हवा गाती नहीं इनकी साँसों में
हँसी नाचती नहीं इनके चेहरों पर।
रेल में बैठी लड़की की लटे हवा में लहरा रही
आँखे उसकी नींद की थाप पर झपक-झपक जा रही।
दो पंक्षी ढूढ़ रहे एक छोटा सा आशियाना
पर मिलता नहीं फुटपाथ का भी आसरा।
समुद्र किनारे गुमसुम बैठा एक बुजुर्ग दंपति
समुद्र की लहरों में अपने अतीत को ढूढ़ रहा।
ना जाने ये लोग जीवन का कौन सा सूत्र अपनाते हैं?
मुश्किल हालतों में भी जीने की लौ जलाते जाते हैं।

पिछले दिनों संयोग का धागा नीली छतरी वाले ने ऐसा बुना जो अमिताभ जी से जाकर मिला। वहाँ से आने के बाद ये तुकबंदी बनी। जिस पर अमिताभ जी ने अपनी उंगलियों का जादू चला दिया। और ऊपर वाला स्केच बना डाला। और ऐसे ये जुगलबंदी बन गई। वैसे मेरे से पहले अमिताभ जी ने मेरी इस मुम्बई यात्रा पर एक बहुत ही सुन्दर पोस्ट लिखकर, अपने ब्लोग पर छाप डाली। जिसका शीर्षक कुछ यूँ था। "सुशील जी की अमिताभ यात्रा" इस पोस्ट को पढ़कर उधर भी घूम आईए।

नोट- ऊपर दिये स्कैच को सही रुप से देखने के लिए उस पर क्लीक करें।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails