Tuesday, May 27, 2008

बर्तोल्त ब्रेष्त और आज का समय

मेरा दर्द बर्तोल्त ब्रेष्त की कलम से ।



जो मेज़ पर से गोश्त छीन लेते है

वे संतोष की सीख देते है ।

जिनके लिए पूजा चढाई जानी है

वे त्याग की माँग करते है ।

छककर खा चुकनेवाले भूखों को बताते हैं

महान समय के बारे में, जो कभी आएगा ।

जो साम्राज्य को सर्वनाश के कगार पर ले जा रहे हैं

कहते हैं शासन चलाना बेहद कठिन हैं

आम आदमी के लिए ।


लेखक- बर्तोल्त ब्रेष्त


यह कविता " एकोतरशती बर्तोल्त ब्रेष्त की 101 कवितायें " में से है । अनुवादक : उज्ज्वल भट्टाचार्य जी है। इसका प्रकाशन वाणी प्रकाशन से हुआ है। इस किताब में और भी प्यारी प्यारी रचनाऐं है आप पढ सकते है।

2 comments:

महेन said...

ब्रेख्त का अनुवाद मोहन थपलियाल जी ने भी किया था लगभग 10 वर्ष पूर्व। अद्भुत है। अवसर मिले तो ज़रूर पढे। यह अनुवाद भी बहुत ही अच्छा है। इसे हमारे समक्ष लाने के लिये शुक्रिया।

महेन said...

ब्रेख्त का अनुवाद मोहन थपलियाल जी ने भी किया था लगभग 10 वर्ष पूर्व। अद्भुत है। अवसर मिले तो ज़रूर पढे। यह अनुवाद भी बहुत ही अच्छा है। इसे हमारे समक्ष लाने के लिये शुक्रिया।

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